झारखंड के मंत्री, विधायक और बड़े नेता अपना इलाज करवाने झारखंड के बाहर जाते हैं– क्यों…?

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झारखंड के मंत्री, विधायक और बड़े नेता अपना इलाज करवाने झारखंड के बाहर जाते हैं– क्यों…?
झारखंड की राजनीति के कद्दावर नेता रहे ददई दुबे ने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में आखिरी सांसें लीं ।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं के कारण दिल्ली के ही अस्पताल में इलाजरत हैं।
झारखंड के मुख्यमंत्री और शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन अपनी सरकार दिल्ली में ही रहकर चला रहे हैं।
झारखंड सरकार के मंत्री हफीजूल हसन भी अपने स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों के कारण दिल्ली के अस्पताल में इलाजरत हैं जहां उनकी सर्जरी होने की भी खबरें हैं।
झारखंड सरकार के पूर्व मंत्री जगरनाथ महतो का इलाज और ऑपरेशन झारखंड राज्य के बाहर हुआ।
झारखंड सरकार में वर्तमान में वित्त मंत्री के रूप में विराजमान राधा कृष्ण किशोर की तबीयत जब ज्यादा बिगड़ी तो उनको भी आनन फानन में बेहतर इलाज के लिए दिल्ली भेजा गया।
झारखंड सरकार में मंत्री रहे राजेंद्र सिंह को स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों के कारण दिल्ली में भर्ती होना पड़ा जहां इलाज के दौरान उन्होंने भी अंतिम सांसें लीं।
15 नवंबर 2000 को झारखंड देश का 28 वां राज्य बना और तब उम्मीद जगी, की खनिज संपदाओं से भरपूर यह छोटा सा राज्य अपने पिछड़ेपन के अभिशाप से बाहर आएगा और विकास की एक नई इबारत लिखेगा।
परंतु दुर्भाग्यवश झारखंड राज्य गठन की 25 वर्ष होने को आए, परंतु लालच और स्वार्थ की कुदृष्टि का शिकार होकर झारखंड 25 वर्ष का स्वस्थ युवा होने की बजाय कुपोषण का शिकार होकर कुपोषित रह गया।
जिस पार्टी की सरकार बनी, जिसके भी हाथों में झारखंड के सत्ता रही, उसके ही ऊपर झारखंड के विकास का पौष्टिक आहार चुरा कर इसे कुपोषित रहने देने का आरोप लगा।
लगभग सभी सत्तानशींनो के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। झारखंड गठन के 25 वर्षों के बाद भी ऐसी स्थिति है कि झारखंड की चिकित्सा व्यवस्था पर भरोसा नहीं है। यहां के सभी विशिष्ट राजनेता लोग अपना इलाज करवाने झारखंड राज्य से बाहर भागते हैं।
अगर जनप्रतिनिधियों का ऐसा आचरण और सोच है, तो इस राज्य के निवासियों की मनोदशा क्या होगी यह महसूस किया जा सकता है।
क्या झारखंड के कुल 24 जिलों में एक में भी ऐसी व्यवस्था नहीं जहां इनका समुचित इलाज हो सके? जवाब अगर ना है तो यह जवाब शर्मिंदा करने वाला है।
झारखंड की स्वास्थ्य सेवाओं को आधुनिक और विश्वसनीय बनाने के लिए अविलंब एक ब्लूप्रिंट बनाने की आवश्यकता है और उसे तीव्र गति से अमलीजामा पहनाने की भी जरूरत है।
अन्यथा मजबूरी और लाचारी का यह बोझ उठाना झारखंड की नीति बनी रहेगी।

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अंकित विजय की कलम से….☝️☝️

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