जमशेदपुर पूर्वी के निर्दलीय विधायक सरयू राय ने इस लेखक से एक बार कहा था कि बताशे के लिए मंदिर नहीं तोड़ा जाता। उनकी व्यक्तिगत लड़ाई रघुवर दास से थी तो फिर पूरे संगठन को नुकसान क्यों पहचाना चाह रहे हैं?
लोकसभा चुनाव 2024 में धनबाद सीट पर खुद भाजपा के टिकट पर लड़ना चाहते थे सरयू राय , परंतु भाजपा संगठन उनके दबाव के आगे नहीं झुका और बाघमारा से भाजपा विधायक ढुल्लू महतो को भाजपा ने टिकट दिया और सरयू राय हाथ मलते रह गए।
सालों से भाजपा संगठन से निष्कासित है, परंतु सरयू राय को उम्मीद थी कि 2024 विधानसभा चुनाव में भाजपा में उनकी वापसी होगी और जमशेदपुर पूर्वी या जमशेदपुर पश्चिम से इन्हें टिकट मिलेगा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपना सहपाठी बताते हुए सरयू राय ने उनसे मुलाकात की तस्वीर सोशल मीडिया पर जारी की और मतदाताओं को भ्रम में डालने का पूरा प्रयास करते दिखाई दिए।
2019 विधानसभा चुनाव में इनके सरपरस्त और पूर्व कैबिनेट मंत्री 2024 लोकसभा का चुनाव हार चुके हैं और उस कोण में भी कमजोर नजर आते हैं।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी मुलाकात की तस्वीर सरयू राय ने सोशल मीडिया में पोस्ट की है।
परंतु वो तह बात भुल रहे हैं कि राज्य में 𝙄𝙉𝘿𝙄𝘼 गठबंधन की सरकार है और जमशेदपुर पूर्वी की सीट व्यावहारिक रूप से गठबंधन के तहत कांग्रेस के कोटे में जाना है ।
और कांग्रेस आलाकमान के अत्यंत प्रिय और कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ अजय कुमार ने अपनी उम्मीदवारी का ऐलान करते हुए जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा क्षेत्र में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। 2019 विधानसभा चुनाव में रघुवर दास से अहंकार की लड़ाई को क्षेत्र के कुछ मजबूत लोगों का जमकर साथ मिला और सहानुभूति के रथ पर सवार होकर निवर्तमान मुख्यमंत्री और पांच बार के विधायक रघुवर दास को हराकर उलट फेर करने में सफल हुए।
परंतु 2019 के चुनाव में सरयू राय के घोर समर्थक अब उनके घोर विरोधी बन चुके हैं और 2019 विधानसभा चुनाव में सेनापति की भूमिका निभाने वाले चंद्रगुप्त 2024 के चुनाव में खुद उतरने का मन बना चुके हैं।
और चुनाव नहीं लड़ने की स्थिति में भी चंद्रगुप्त सिंह सरयू राय के खिलाफ ही होंगे या बात भी तय है।
पिछले 5 वर्षों से जमशेदपुर पूर्वी के निर्दलीय विधायक के तौर पर सरयू राय जनता की उम्मीद पर खरा उतरने में असफल साबित हुए हैं। चाहे वह 100 से ज्यादा बस्तियों के मालिकाना हक का मामला हो, बंद पड़े केबल कंपनी के खुलवाने का मामला हो, टिस्को निबंधित श्रमिक संघ का मामला हो, शहर के फूटपाथी दुकानदारों का मामला हो या फिर जन समस्याओं को सुलझाने का मामला हो, हर जगह सरयू राय की फिसड्डी साबित हुए हैं।
और सरयू राय यह बात अच्छे से जानते हैं कि 2019 के चुनाव की तरह 2024 के चुनाव में भी अगर वह निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ते हैं तो उनकी जमानत भी जप्त हो सकती है।
चाहे विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने का समय हो या राज्यसभा चुनाव का समय हो, सरयू राय हमेशा तटस्थ रहे और इन सबके एवज में अपने क्षेत्र की जनता का भला करने के मौके से चुक गए।
रोजगार ,शिक्षा और महंगाई जैसे मुद्दों पर सरयू राय की खामोशी को लेकर जमशेदपुर पूर्वी की जनता में खासकर युवा वर्ग में खासा आक्रोश नजर आ रहा है।
खुद को इन 5 वर्षों में हमेशा विवाद के केंद्र में रखना, चाहे वह सूर्य मंदिर पर आधिपत्य जमाने का मामला हो, बसंत टॉकीज के सामने स्थित बजरंगबली के मंदिर निर्माण में घुसपैठ कर उसे अर्ध निर्मित अवस्था में छोड़ने का मामला हो, या फिर नवनिर्मित ग्रेजुएट कॉलेज के सामने स्थित हनुमान और शनि देव के मंदिर को टाटा स्टील के गुंडो द्वारा तोड़ने का मामला हो, इनके अपरिपक्व राजनीतिक निर्णय ने इनकी छवि को बद से बदतर बनाने का काम किया। सरयू राय की सबसे बड़े बेचैनी की वजह यह है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में जमशेदपुर पूर्वी से भाजपा प्रत्याशी विद्युत वरण महतो ने डेढ़ लाख से ज्यादा मतों से बढ़त दर्ज की और इस परिणाम से सरयू राय में घबराहट और बेचैनी साफ नजर आती है।
महान लेखक मार्क ट्वेन ने लिखा था–
𝙋𝙤𝙡𝙞𝙩𝙞𝙘𝙞𝙖𝙣𝙨 𝙖𝙣𝙙 𝙙𝙞𝙖𝙥𝙚𝙧𝙨 𝙢𝙪𝙨𝙩 𝙗𝙚 𝙘𝙝𝙖𝙣𝙜𝙚𝙙… यानी डायपर और नेताओं को बदलते रहना चाहिए और दोनों को बदलने की वजह एक है-
इन्हें बदला ना जाए तो गंदगी भर जाती है।
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