अवसरवादी हैं सरयू राय — परशुराम सिंह “बागी”…
सरयू राय राय को पहली बार शहरवासियों से परिचय मैंने करवाया और रघुवर दास ने 2005 में झारखंड बिहार के कद्दावर नेता स्व० मृगेंद्र प्रताप सिंह का टिकट कटवा कर सरयू राय को जमशेदपुर पश्चिम से टिकट दिलवाने में मदद की और जितवाकर विधानसभा भेजा।
पर सरयू राय आत्मकेंद्रित व्यक्ति हैं।
जो केवल अपना स्वार्थ देखते हैं और मतलब निकल जाने के बाद मददगार की ओर पलट कर नहीं देखते। 𝙎𝙋𝙔 𝙋𝙊𝙎𝙏 की खास बातचीत “भारत रक्षा मंच” के जिला अध्यक्ष और 2009 में जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर झारखंड विधानसभा का चुनाव लड़ चुके परशुराम सिंह बागी के साथ ——
2024 लोकसभा का चुनाव संपन्न हो चुका है और 2024 के अंत तक झारखंड विधानसभा का चुनाव होने के पूरे आसार हैं। झारखंड के सभी 81 विधानसभा सीटों पर चुनावी वैतरणी को पार कर विधानसभा के चौखट पर दस्तक देने को आतुर राजनीति के धुरंधरों ने अपनी अपनी चुनावी बिसात पर अपने मोहरों को बिछाना शुरू कर दिया है। जमशेदपुर पूर्वी से वर्तमान में निर्दलीय विधायक और पूर्व भाजपा नेता सरयू राय काबिज हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव के समय उत्पन्न राजनीतिक हालातों का पूरा फायदा उठाते हुए सरयू राय ने तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को करीब 16000 मतों से हराकर चुनाव जीतने में सफल रहे।
2019 के चुनाव में सहानुभूति और सम्मान को हथियार बनाकर चुनावी नैया पार लगाने वाले सरयू राय के जमशेदपुर वासियों से परिचित होने की पूरी कहानी बकौल परशुराम सिंह बागी—–
उस समय बिहार का विभाजन होकर झारखंड अलग राज्य नहीं बना था। सरयु राय उस वक्त बिहार विधान परिषद (𝙈𝙇𝘾) के सदस्य थे परंतु उनका रांची आना-जाना प्रायः होता था। वहीं उस वक्त के कद्दावर बीजेपी नेता अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति मोर्चा के जवाहर पासवान से अक्सर मुुुलाकात होती थी।
बकौल परशुराम सिंह बागी– मैं भी रांची आता जाता रहता था और जवाहर पासवान के कार्यालय में सरयू राय से मुलाकात होती थी। इसी बीच वर्ष 2003 में परशुराम सिंह ने सरयू राय को जमशेदपुर आने का निमंत्रण दिया जैसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।
मानगो डिमना रोड के राजेंद्र नगर में दुर्गा पूजा पंडाल के उद्घाटन हेतु पूजा के आयोजक बंधु विनोद सिंह सह मनोज सिंह के साथ परशुराम सिंह बागी ने सरयू को निमंत्रित किया।
शहर में पहली बार ऐसा हुआ कि मुख्य अतिथि के रूप में किसी कार्यक्रम में शामिल होने पधारे और मानगो चौक गोल चक्कर पर दो हाथियों को सजाया गया।
और एक हाथी में सरयू राय और दूसरे हाथी में जवाहर पासवान को बैठाकर ढोल नगाड़ा और आतिशबाजी के साथ दोनों अतिथियों को पूजा पंडाल तक ले जाया गया।
मानगो चौक स्थित सुमन मोटर्स के मालिक के लड़के सुधीर पांडे ने दोनों हाथियों को अपने हाथों से केले की एक-एक कांदी को खिलाया था।
इस उद्घाटन समारोह में शामिल होने से पहले तक सरयू राय से जमशेदपुरवासी अपरिचित थे। ऐसा इसलिए, क्योंकि सरयू राय का इस शहर और यहां के राजनीति से कभी कोई वास्ता नहीं रहा। पूजा पंडाल का उद्घाटन हाथी पर बैठकर करने आए अतिथि सरयू राय , यह खबर दूसरे दिन सभी बड़े अखबारों की सुर्खियां बनी और शहर ने पहली बार सरयू राय का नाम जाना।
इसके बाद जवाहर पासवान और सरयू राय जब भी टाटा आते तो मुझसे भी मिलते।
शहर आने-जाने के क्रम में सरयू राय की निकटता जमशेदपुर पूर्वी के विधायक और तत्कालीन मंत्री रघुवर दास से हुई। रघुवर दास से निकटता का पूरा लाभ उठाते हुए सरयू राय उस समय के झारखंड के राजनीति के भीष्म पितामह स्वर्गीय मृगेंद्र प्रताप सिंह का टिकट कटवाकर खुद 2005 में विधानसभा चुनाव में जमशेदपुर पश्चिम से भाजपा का टिकट पाने में कामयाब हो गए। सरयू राय को 2005 में भाजपा का टिकट दिलवाने में रघुवर दास की अहम भूमिका रही ( सुत्रों ने बताया)। मृगेंद्र प्रताप सिंह इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सके और कुछ ही दिनों के अंतराल में कई राज सीने में दबाए इस दुनिया से विदा हो गए।
आज भी जमशेदपुर पश्चिम में उनके द्वारा कराई गई विकास योजनाओं के शिलापट्ट में अंकित उनका नाम उनकी स्मृति को जीवित रखे हुए हैं। परशुराम सिंह ने सरयू राय पर व्यंग्य करते हुए कहा कि विधानसभा का टिकट पहली बार सरयू राय को रघुवर दास ने ही दिलवाने में मदद और उनका एहसान मानने की बजाय सम्मान की खोखली लड़ाई को मुद्दा बनाकर जमशेदपुर पूर्वी से तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवरदार के खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा।
और जमशेदपुर पूर्वी के जनता को गुमराह करने में कामयाब रहे की रघुवर दास ने उनका टिकट जमशेदपुर पश्चिम से कटवाया।
बकौल परशुराम सिंह — सरयू राय यह बोलने का साहस भी दिखाएं की एक अनजान और पैराशूट उम्मीदवार को पहली बार जमशेदपुर की जनता से रूबरू किसने करवाया?
पहली बार विधानसभा का टिकट किसने दिलवाया?
सरयू राय केवल राजनीति करते हैं और आज 73 वर्ष की उम्र में भी अपने स्वार्थ के वशीभूत भाजपा और आरएसएस की जड़ों को खोदने के प्रयास में लगे हुए हैं। वहीं जब स्वर्गीय मृगेंद्र प्रताप सिंह का टिकट 2005 में काटा गया था तब उनकी आयु मात्र 65 वर्ष 10 महीने के करीब थी।
