अगर आपके पास संख्या है तो आप कुछ भी कर सकते हैं ?
संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे। इनमें से 292 सदस्य प्रांतीय प्रतिनिधि थे । संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे ।
संविधान सभा ने संविधान निर्माण के लिए कुल 22 समितियां बनाई थीं । इनमें से आठ प्रमुख समितियां थीं और बाकी छोटी समितियां थीं ।
उन 8 प्रमुख समितियों में से एक प्रमुख समिति “प्रारूप समिति” Drafting Committee के अध्यक्ष डॉ बी आर अंबेडकर थे।
भारतीय संविधान सभा ने स्वतंत्र भारत के लिए संविधान तैयार करने के लिए कुल 165 दिनों में 11 सत्र आयोजित किए थे। इनमें से 114 दिन संविधान के मसौदे पर चर्चा में लगे थे । संविधान सभा को संविधान तैयार करने में लगभग तीन साल (दो साल, ग्यारह महीने और सत्रह दिन) लगे थे ।
लेकिन पिछले कुछ दिनों से नहीं, बल्कि पिछले कई वर्षों से देश में ऐसा हुड़दंग हंगामा हो रहा है मानो इस देश का संविधान एक अकेले आदमी डॉ बी. आर. अंबेडकर ने रच डाला।
मानो शेष 388 सदस्य 114 दिनों में आयोजित हुए 11 सत्रों के दौरान पतंगें उड़ाने, लट्टू नचाने, कंचे खेलने और गप्पे लड़ाने में व्यस्त रहते थे।
सच ये है कि संविधान सभा के 389 सदस्य देश के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों की जमात थी। पूरे संविधान में एक शब्द या प्रावधान ऐसा नहीं है जिसे संविधान सभा के 388 सदस्यों ने खारिज़ कर दिया हो लेकिन डॉ अंबेडकर ने अपनी मर्जी से जबरिया डाल दिया हो। पूरा संविधान उन विद्वानों की सर्वसम्मत सहमति या बहुमत से पास हुए प्रावधानों/प्रस्तावों का परिणाम हैं।
लेकिन संविधान दिवस से लेकर अबतक हुई चर्चा में उस संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेन्द्र प्रसाद समेत शेष 388 सदस्यों का जिक्र तक नहीं किया गया।
दलितों को आरक्षण का प्रावधान संविधान का हिस्सा इन्हीं विद्वानों के बहुमत की सहमति से बन सका था। इसके बिना यह संभव ही नहीं था।
अगर सरकार के मुखिया को अच्छे कामों का यश मिलता है तो संविधान सभा के मुखिया (अध्यक्ष) तो राजेंद्र प्रसाद थे?
ड्राफ्टिंग कमेटी का काम तो संविधान सभा में पारित हुई बातों को ड्राफ्ट करना था। मतलब जिसने संविधान सभा में पारित करवाया उसका कोई योगदान नहीं, योगदान तो उसको सिर्फ़ अंकित करने वाले की है ।
या तो सभी विद्वानों को क्रेडिट दो, या फिर संविधान सभा के अध्यक्ष को। संख्या के दम पर सत्य को दबाने की कोशिश हो रही है।
