इसराइल जीता तो मजबूत होगा भारत, कमजोर होंगे चीन और पाकिस्तान
पश्चिम एशिया में ईरान और इसराइल के बीच युद्ध सिर्फ दो देशों की टकराहट नहीं है, बल्कि इसकी लहरें पूरी दुनिया में फैल सकती हैं। भारत जैसे देश के लिए, जिसकी ऊर्जा सुरक्षा, सामरिक हित और वैश्विक कूटनीति इस क्षेत्र से गहराई से जुड़ी है, यह युद्ध विशेष रूप से मायने रखता है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यदि यह युद्ध होता है, तो भारत के लिए किसकी जीत अधिक लाभकारी होगी? तथ्य यही कहते हैं कि इसराइल की जीत भारत के लिए दीर्घकालिक दृष्टि से अधिक उपयोगी हो सकती है।
भारत और इसराइल के बीच संबंध केवल कूटनीतिक स्तर पर नहीं हैं, बल्कि रक्षा, तकनीक, साइबर सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी रणनीति जैसे अहम क्षेत्रों में भी यह साझेदारी गहरी हो चुकी है। भारत इसराइल से सालाना लगभग 2-3 अरब डॉलर के हथियार खरीदता है, जिनमें स्पाइक मिसाइल, हेरॉन ड्रोन और बराक-8 एयर डिफेंस सिस्टम जैसे आधुनिक हथियार शामिल हैं। इसके साथ ही इसराइल भारत को जल संरक्षण, स्मार्ट एग्रीकल्चर और साइबर टेक्नोलॉजी जैसी उन्नत तकनीक भी मुहैया कराता है। इसराइल की मजबूती का मतलब है भारत को स्थायी और भरोसेमंद रणनीतिक सहयोग।
भारत और इसराइल की एक और बड़ी समानता है आतंकवाद के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति। दोनों देशों ने दशकों से आतंकवाद का सामना किया है। इसराइल का जो रुख हमास और हिज़बुल्लाह जैसे संगठनों के प्रति है, वही भारत का पाकिस्तान-प्रायोजित आतंक के प्रति है। यहां पाकिस्तान का नाम इसलिए भी अहम हो जाता है क्योंकि कई रिपोर्ट्स में यह सामने आया है कि पाकिस्तान की आईएसआई और ईरान के सुरक्षा तंत्र के बीच सीमित लेकिन उपयोगी संवाद रहा है, खासकर भारत-विरोधी रणनीतियों पर। इसराइल की जीत इन नेटवर्क्स को दबाव में ला सकती है, जिससे भारत को सुरक्षा के क्षेत्र में राहत मिलेगी।
चीन का कोण भी इस समीकरण में बेहद अहम है। ईरान और चीन के बीच 2021 में हुआ 25 साल का रणनीतिक सहयोग समझौता इस क्षेत्र में चीन के प्रभाव को बढ़ा चुका है। चीन ने ईरान में 400 अरब डॉलर के निवेश की योजना बनाई है, जो भारत के लिए चुनौतीपूर्ण है क्योंकि इससे चीन को अफगानिस्तान, पाकिस्तान और पश्चिम एशिया में एक साथ पहुंच मिल जाती है। भारत की चाबहार परियोजना को भी यह अस्थिर कर सकता है। यदि ईरान कमजोर होता है या युद्ध के बाद अस्थिर होता है, तो चीन की पकड़ ढीली पड़ सकती है और यह भारत के सामरिक हितों के लिए राहतभरा संकेत होगा।
तेल आपूर्ति के दृष्टिकोण से देखें तो भारत की ईरान पर निर्भरता अब लगभग समाप्त हो चुकी है। अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते भारत ने ईरान से कच्चे तेल की खरीद रोक दी है और अब सऊदी अरब, इराक और रूस जैसे देशों पर निर्भर है। यानी अगर ईरान कमजोर होता है, तो भारत की ऊर्जा सुरक्षा सीधे प्रभावित नहीं होगी। हाँ, तेल कीमतें अस्थायी रूप से बढ़ सकती हैं, लेकिन इसराइल की निर्णायक जीत से क्षेत्र में स्थिरता लौटने की संभावना भी बढ़ेगी।
इसके साथ ही इसराइल की जीत अमेरिका और यूरोप की स्थिति को मजबूत करेगी, जो भारत के लिए सामरिक और कूटनीतिक मंचों पर सहयोग का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। भारत अब G-20, QUAD और I2U2 जैसे समूहों का हिस्सा है, जहां इसराइल, अमेरिका और अरब देशों की भागीदारी भारत के लिए संतुलन बनाने का अवसर देती है।
मेरा अनुमान यही है कि भले ही भारत दोनों देशों के साथ संबंध रखता हो, लेकिन दीर्घकालिक दृष्टि से देखें तो इसराइल की जीत भारत के लिए तकनीकी, सामरिक, और कूटनीतिक दृष्टिकोण से कहीं अधिक लाभकारी साबित हो सकती है। भारत की प्राथमिकता हमेशा शांति रहेगी, लेकिन यदि संघर्ष अपरिहार्य हो, तो एक मज़बूत और स्थिर इसराइल, भारत के हितों को बेहतर ढंग से साध सकता है।
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अंकित विजय की कलम से….☝️☝️
