मेडिकल स्टोर के लाइसेंस पर शहर में चल रहे अवैध पॉलीक्लिनिक, स्वास्थ्य विभाग असहाय…

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मेडिकल स्टोर के लाइसेंस पर शहर में चल रहे अवैध पॉलीक्लिनिक , स्वास्थ्य विभाग असहाय…..

जमशेदपुर शहर में चल रहा है अभूतपूर्व खेल मरीजों की जेब ढीली करने का।
ड्रग विभाग से मेडिकल स्टोर खोलने का लाइसेंस लेकर शहर के कई बड़े मेडिकल स्टोर्स में चल रहा है अवैध पॉलीक्लिनिक। दरअसल एक एमबीबीएस डॉक्टर को अपना क्लीनिक चलाने के लिए राज्य चिकित्सा बोर्ड से चिकित्सा लाइसेंस और व्यवसाय लाइसेंस लेना अनिवार्य है।
दवा दुकान संचालित करने वालों ने कमाई करने का एक शॉर्टकट रास्ता बना दिया है। दरअसल दवा दुकान खोलने के लिए ड्रग विभाग से एक योग्य फार्मासिस्ट के डिग्री पर लाइसेंस जारी किए जाते हैं। जहां उस दवा दुकान में उसे फार्मासिस्ट का बैठना अनिवार्य है। वहीं अगर मेडिकल स्टोर वाले अपने मेडिकल दुकानों में एक डॉक्टर को बैठाना चाहें तो उन्हें सिविल सर्जन के कार्यालय से क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट के तहत पॉलीक्लिनिक का लाइसेंस लेना अनिवार्य है।
परंतु दवा दुकान संचालक मेडिकल दुकान के लाइसेंस पर अवैध रूप से पॉलीक्लिनिक चला रहे हैं। यह एक संगठित अपराध है और साथ ही साथ मरीजों का आर्थिक दोहन भी।

इस खेल से मरीजों को होने वाले नुकसान…..

दवा कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव अक्सर मेडिकल दुकानों में बैठकर मरीजों को देखने वाले डॉक्टर के पास फेरी लगाते रहते हैं। वह डॉक्टर से बात कर अपनी कंपनी की दवा का एक “टारगेट” तय करते हैं। उस टारगेट के बदले हासिल होने वाले “लाभ” के लालच में जाकर डॉक्टर इस कंपनी की दवा मरीजों को लिखना शुरू कर देते हैं।
भले ही वह दवा मरीजों के लिए पहली प्राथमिकता वाली दवा ना हो। मेडिकल दुकानदारों को भी ऐसी दवा “स्टॉक” करने के लिए अतिरिक्त समय सीमा और अतिरिक्त लाभ प्रतिशत का लालच दिया जाता है। अक्सर डॉक्टर मरीज को कुछ ऐसी दवा लिख देते हैं जो मरीज के लिए गैर जरूरी होता है, क्योंकि डॉक्टर को दवा कंपनियों द्वारा दिए गए सेल्स टारगेट को हासिल करना होता है। मरीज को अक्सर पहली प्राथमिकता वाली दवाइयां ना देकर टारगेट वाली दवाइयां दी जाती है।
मरीज की बीमारी ठीक ना होने पर वह जब दूसरी बार डॉक्टर के पास जाता है तो उसकी दवाइयां को बदलकर पहली प्राथमिकता वाली दवाई दी जाती हैं।

ऐसा करने से मरीजों का आर्थिक शोषण के साथ-साथ मानसिक और शारीरिक शोषण भी होता है। सूबे के स्वास्थ्य मंत्री, स्वास्थ्य सचिव, राज्य फार्मेसी परिषद, उपयुक्त महोदय के साथ-साथ जिले के सिविल सर्जन को भी इस मामले में संवेदनशील और मानवीय रूप अपनाते हुए उचित और सार्थक कदम उठाने होंगे। अन्यथा मध्यम वर्ग इस तिलिस्म में उलझ कर अपना सब कुछ गंवाता रहेगा।

क्या कहता है नियम—–

एक एमबीबीएस डॉक्टर मेडिकल स्टोर में सीधे तौर पर प्रेक्टिस नहीं कर सकता। ऐसा करने के लिए उसे फार्मेसी में एक डिग्री या किसी मान्यता प्राप्त फार्मासिस्ट को नियुक्त करना होगा। एक एमबीबीएस डॉक्टर का मुख्य काम चिकित्सा निदान और उपचार करना है ना कि दवाओं की बिक्री और वितरण।
आप एमबीबीएस डॉक्टर के रूप में एक क्लीनिक या अस्पताल में काम कर सकते हैं लेकिन आपको एक फार्मासिस्ट को नियुक्त करना होगा।
एमबीबीएस डॉक्टर अपने क्लीनिक में अपने मरीज को दवाएं बेच सकते हैं, वह भी आपातकालीन उपयोग के रूप में।
मरीज को सीधे दवा का बिल नहीं दे सकते। यदि कोई डॉक्टर मेडिकल स्टोर भी खोलता है तो उसे राज्य फार्मेसी परिषद के साथ पंजीकृत होना चाहिए और वैद्य फार्मेसी लाइसेंस प्राप्त करना चाहिए।
जो कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 के अनुसार अनिवार्य हो।
नोट– मरीजों द्वारा सीधे अपने मरीज को दवा बेचने को “फिजिशियन डिस्पेंसिंग” कहा जाता है।

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