जमशेदपुर शहर में दिनों दिन ट्रैफिक का बोझ बढ़ता जा रहा है। जिस रफ्तार से शहर वासी प्रत्येक वर्ष हजारों की संख्या में शहर की सड़कों पर नई गाड़ियों को खरीद कर सवारी कर रहे हैं, उस रफ्तार से जमशेदपुर की यातायात व्यवस्था का विकास नहीं हो पाया है।
साथ-साथ शहर की सडकें भी रिंग रोड और फ्लाई ओवर की कमी के कारण भारी ट्रैफिक बोझ के तले दबी जा रही है। शहर में तीन पहिया वाहनों की अनुमानित संख्या 30000 के करीब है।।जमशेदपुर शहर का साकची गोल चक्कर को शहर के केंद्र के रूप में जाना जाता है।
साकची बाजार शहर का मुख्य बाजार है और प्रतिदिन शहर के विभिन्न हिस्सों से आमजन हजारों की संख्या में खरीदारी करने साकची बाजार आते हैं। इन शहर वासियों को अपनी तीन पहिया गाड़ी में बिठाने को लेकर ऑटो चालकों के बीच आपस में ही प्रतिस्पर्धा रहती है।
जिसके वजह से शहर की यातायात व्यवस्था पूरी तरह इन तीन पहिया चालकों के कब्जे में नजर आती है। इन ऑटो चालकों के खिलाफ कागजात की जांच करने के नाम पर यातायात पुलिस के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। झारखंड में झारखंड राज्य सड़क परिवहन निगम नहीं है जिसके कारण सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था निजी हाथों में है। इसका पूरा फायदा ऑटो चालक उठाते हैं और सरकारी उदासीनता या “अदृश्य शक्ति” के पावर का फायदा उठाते हुए इन्होंने पूरे साकची क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित कर रखा है।
किसी पुलिसकर्मी में हिम्मत नहीं कि उनके ड्राइविंग लाइसेंस, रोड टैक्स के कागजात ,परमिट के कागजात, प्रदूषण जांच के कागजात सहित अन्य जांच कर सकें।
किसी शहर वासी ने इन लोगों के बुरे आचरण को लेकर कोई विरोध करने की हिम्मत दिखाई तो यह झुंड बनाकर उन पर टूट पड़ते हैं। इनके कारगुजारियां यातायात पुलिस के सामने जारी रहती है और ट्रैफिक पुलिस बेबस और लाचार खड़े होकर उनके अमर्यादित आचरण को देखते रहती है।
साकची गोल चक्कर की इर्द 10 से ज्यादा जगहों पर पार्किंग के नाम पर इनका अवैध कब्जा है और साकची गोल चक्कर के पास खड़े होकर देखने पर ऑटो चालकों का कब्जा नजर आता है। प्रशासन को अविलंब इन्हें साकची गोल चक्कर के पास से हटाकर दूसरी जगह इनको व्यवस्थित करना चाहिए, ताकि शहर वासी इनके खौफ से मुक्त होकर चैन के साथ ले सकें।मध्यम वर्गीय परिवारों के दो पहिया चालकों को हेलमेट चेकिंग और कागजात जांच के नाम पर दोहन करने के बजाय इन तीन पहिया ऑटो चालकों को नियंत्रित करने के लिए ठोस और कठोर कदम उठाना समय की मांग है।









