गृह मंत्री श्री अमित शाह ने बिल्कुल ठीक कहा है कि राहुल गांधी ने सरकारी आवास खाली करके कोई बहुत बड़ा काम नहीं किया है, कानून के मुताबिक उन्हें ऐसा करना ही था। लेकिन सवाल है कि लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी किस कानून के तहत सरकारी बंगलों में जमे हुए हैं?
आडवाणी और जोशी पिछले दस साल से किसी संसद के किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं, लेकिन दोनों नेता क्रमशः पृथ्वीराज रोड और रायसीना रोड पर केंद्रीय मंत्रियों को मिलने वाले बंगलों में रह रहे हैं।
इसी तरह गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा को राज्यसभा से रिटायर हुए करीब एक साल हो गया है लेकिन उन्होंने सरकारी बंगला खाली नहीं किया है। गुलाम नबी आजाद के पास तो जम्मू कश्मीर में भी एक सरकारी बंगला है, जिसे रखने की उनके पास कोई पात्रता नहीं है। बसपा सुप्रीमो मायावती 2017 से संसद के किसी भी सदन की सदस्य नहीं हैं लेकिन सरकारी बंगले में कायम हैं.
कई केंद्रीय मंत्री ऐसे हैं, जो सरकारी बंगलों में रह रहे हैं लेकिन उन्होंने वह सरकारी फ्लैट भी खाली नहीं किया है जो उन्हें मंत्री बनने से पहले सांसद के नाते मिला था। ऐसा किस कानून के तहत चल रहा है?
आडवाणी, जोशी और गुलाम नबी आजाद के बारे में सरकार दलील दे सकती है कि इन सुरक्षा कारणों के चलते इन नेताओं से सरकारी बंगला खाली नहीं कराया गया है, लेकिन सवाल है कि यह देश का ऐसा कौनसा कानून है जो सुरक्षा कारणों से किसी नेता को या पूर्व मंत्री को सरकारी बंगले में रहने की इजाजत देता है?
अगर किसी नेता या पूर्व मंत्री की जान को खतरा है तो सरकार उस नेता को उसके निजी आवास पर भी सुरक्षा उपलब्ध करा सकती है, इसके लिए उसे सरकारी बंगले में रहने की सुविधा देना तो कतई जरूरी और कानून सम्मत नहीं है।
