शहर में अपोलो फार्मेसी के सात आउटलेट चल रहे हैं पर किसी में भी फार्मासिस्ट नहीं है। नौसिखिये स्टाफ डॉक्टर द्वारा लिखे गए पर्ची को पढ़कर मरीजों को अपनी मर्जी से दे रहे हैं दवाई।
किसी भी दवा दुकान को चलाने के लिए दवा दुकान के लाइसेंस के साथ-साथ एक फार्मासिस्ट की जरूरत होती है। दवाई को केवल फार्मेसी अधिनियम 1948 के तहत पंजीकृत फार्मासिस्ट द्वारा और ड्रग्स एवं कॉस्मेटिक अधिनियम 1940 और नियम 1945 के तहत प्राप्त लाइसेंस के अनुसार बेचा जा सकता है।
फार्मासिस्ट ठेकेदारी प्रथा के हिसाब से काम करते हैं और अपने प्रमाण पत्र को मेडिकल दुकान चलाने वालों को किराए पर दे देते हैं और घर बैठे बैठे अच्छा मुनाफा कमाते हैं। परंतु पंजीकरण प्रमाण पत्र दूसरों को किराए पर देना गैरकानूनी है। जमशेदपुर जैसे शहर जहां 1500 के लगभग दवा दुकानें हैं और ड्रग इंस्पेक्टर केवल तीन हैं, ऐसे में उनके लिए हर दुकान में घूमना आसान नहीं होता और यह सबसे बढ़िया रास्ता चुनते हैं मंथली बेसिस का। परंतु इनका यह पता नहीं कि इससे किसी की जान भी जा सकती है और अप्रशिक्षित स्टाफ किसी भी मरीज को गलत दवा देकर उसकी बीमारी के सारे समीकरण को बिगाड़ सकता है।
नियमित जांच होने पर नहीं चलेगा बहाना…
लाइसेंस काे खरीद कर दवा बेचने का व्यवसाय करने वाले जब भी डीआई द्वारा दुकानों का निरीक्षण किया जाता है तब फार्मासिस्ट होने का दावा करते हैं लेकिन कभी खाना खाने तो कभी चाय पीने का बहाना बनाकर अधिकारी को बरगला देते हैं, अधिकारी भी नियमित जांच नहीं कर पाते, इसलिए मान भी जाते हैं, लेकिन जब सभी ब्लॉकों में डीआई की पोस्टिंग हो जाएगी तो डीआई नियमित मेडिकल दुकानों में समय बेसमय दबिश देंगे तब दुकानदार बहाना नहीं बना सकेंगे। इसके अलावा लाइसेंस खरीदने के साथ ही मेडिकल दुकान संचालकों को फार्मासिस्ट को भी नौकरी देने का दोहरा खर्च भी पड़ सकता है। ऐसे में गड़बड़ी पर काफी हद तक रोक लगने की संभावना जताई जा रही है।
डीआई की कमी सबसे बड़ा कारण
मेडिकल स्टोर्स में प्रतिबंधित दवाओं की बिक्री पर रोक नहीं लग पाने का सबसे बड़ा कारण ड्रग इंस्पेक्टर्स की कमी को बताया जा रहा है। काम का बोझ होने के कारण डीआई नियमित रूटीन के कार्यों से ही नहीं निबट पाते हैं, एक डीआई द्वारा जिले भर की बाउंड्री कवर कर पाना संभव नहीं होता इसलिए कार्रवाई भी नहीं हो पाती है। उम्मी््
शेडयूल एच की प्रतिबंधित दवाएं एंटीबायोटिक, एल्प्राजोलम, डायजीपॉम, फिनारगन, कोरेक्स सिरफ,, फेंसीडिल सिरप,, डायजीपॉम इंजेक्शन, इंजेक्शन पेंटाजोसिम जैसी नशीली दवा किसी को तभी दी जा सकती है जब किसी डॉक्टर ने उसके लिए पर्ची लिखकर दी हो। यानि इस प्रकार की दवाएं बिना पर्ची के नहीं ली जा सकती। किंतु जिले के अधिकांश मेडिकल स्टोर्स में ये दवाइयां आसानी से उपलब्ध हो जाती है। बस पैसा ज्याद लगता है, इस प्रकार की दवा बेचने के लिए तो नगर के कुछ मेडिकल स्टोर्स पहले भी चर्चित रहे हैं।
बिना पर्ची के भी मिल जाती है प्रतिबंधित दवा
सीधी बात
फार्मासिस्ट नहीं होने पर होगी कार्रवाई…


