कुंभ से जुड़े सारे हादसों और हजारों मौतों की सबसे बड़ी वजह है ‘ 144 साल बाद’ और पूर्ण कुंभ को ‘महाकुंभ’ बताने वाली अफवाह!
सरकार द्वारा भारी भरकम खर्च से प्रायोजित इस अफवाह को फैलाने के लिए कथित धर्माचार्य, पालतू मीडिया और व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी मुख्य रूप से जिम्मेदार है।
भगदड़ और “मोक्ष” पर एक त्वरित टिप्पणी..
महाकुंभ की बदइंतजामी और इसे पॉलिटिकल इवेंट में तब्दील करने के खिलाफ मेरी मुखरता ने मेरे कई हिंदू दोस्तों को दुश्मन बना दिया है…लेकिन मैं ये सोचकर बेफिक्र हूं कि जिस हिंदू को अपने साथी हिंदुओं की मौत से ज़्यादा सरकार की छवि की चिंता है, वो दोस्त ना ही रहें तो अच्छा क्योंकि मेरी नज़र में ऐसे लोग हिंदू नहीं बल्कि जॉम्बीज हैं, जिन्हें अपने स्वधर्मियों की मौत से भी फर्क नहीं पड़ता..उन्हें फर्क बस इस बात से पड़ता है कि सरकार के फर्जीवाड़ों की पोल ना खुल जाए..अब आते हैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ पर..
क्या आपको पता है 2013 के कुंभ स्नान में जिस भगदड़ के लिए आज़म खान और अखिलेश यादव को दोष दिया जाता है, उस भगदड़ में किसकी गलती थी? तब भी गलती रेलवे की ही थी..जिस तरह आज नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का प्लेटफॉर्म बदला गया, उसी तरह 2013 में भी आखिरी मौके पर ट्रेन का प्लेटफॉर्म बदला गया..नतीजन भगदड़ मची और 36 लोगों की मौत हो गई..गलती रेलवे की थी लेकिन आज़म खान ने भी नैतिक जिम्मेदारी ली और मेला प्रभारी पद से इस्तीफा दिया.. हालांकि अखिलेश ने इस्तीफा स्वीकार नहीं किया..फिर भी आज़म खान में इतनी शर्म तो थी कि रेलवे की गलती होने के बावजूद नैतिक जिम्मेदारी ली जबकि ये भगदड़ रेलवे स्टेशन पर हुई, कुंभ क्षेत्र में नहीं..
अब इसकी तुलना हिंदू हृदय सम्राटों की सरकारों से करिए..पहले कुंभ क्षेत्र में 2 भगदड़ हुई..एक बताई..मरे करीब 60 से 70 लेकिन 30 बताए..अब नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में लोग मरे हैं..आदत के मुताबिक हताहतों की संख्या कम ही बताई जाएगी..क्या किसी ने मानी गलती..क्या किसी ने स्वीकार किया कि कुछ कमियां रह गई?
आपने देखा होगा कुंभ शुरू होने से पहले रील मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दावे किए थे कि हमने ये इंतजाम किए हैं, वो व्यवस्थाएं की हैं..आजकल भी हर दूसरे दिन रील मंत्री वॉर रूम से रील बनाकर डालते हैं लेकिन रेल की दुर्दशा की तस्वीरें रोज़ आती हैं..बेशर्मों को पता है कि जनता की आंखों पर धर्म का चश्मा चढ़ा है, नाकामियां दिखेंगी नहीं, इसलिए व्यवस्था सुधारने का कोई प्रयास ही नहीं करते..जब बिना काम के वोट मिल रहे हैं तो मेहनत क्यों करनी?
सोचिए देश में रेलवे की पहचान माने जाने वाले नई दिल्ली रेलवे स्टेशन का ये हाल है.. ना भीड़ को नियंत्रित करने का तंत्र है..ना ट्रेन को लेकर सही सूचना देने की व्यवस्था..जबकि ये रेलवे का बेसिक या यूं कहें कि न्यूनतम काम है..मैं खुद कुंभ में देखकर आया कि कम्युनिकेशन की व्यवस्था पूरी तरह चौपट है..मेरे कुछ मित्र भी इसके भुक्तभोगियों में शामिल हैं लेकिन वो उसका ज़िक्र नहीं करते..उन्हें झूठ की बुनियाद पर खड़े किए गए सरकार के दावों की चिंता है..
मैं हमेशा कहता हूं कि भारत देश गरीबों के लिए नहीं है..अगर गरीबों को 10 किलो राशन की व्यवस्था को आप उनका मूल्य समझते हैं तो ठीक है लेकिन जब बात गरीबों की ज़िंदगी की कीमत की आती है, तो उसका मूल्य कीड़े मकोड़ों जैसा है..
अब आज दिन भर उन लोगों की सोशल मीडिया पोस्ट देखिएगा, जो स्व घोषित हिंदू हैं..भगदड़ के लिए भीड़ हो दोषी ठहरा देंगे,जैसे कुंभ मेला क्षेत्र में अदृश्य सरस्वती की तरह अदृश्य लाल टोपी वालों को दोषी ठहरा दिया था..इनके लिए सब दोषी होंगे सिवाय उस सरकार के, जिसने 100 करोड़ लोगों के लिए इंतजाम की व्यवस्था का दावा किया था और अपने झूठे दावे को सही ठहराने लिए श्रद्धालुओं की संख्या 50 करोड़ के पार पहुंचा दी..यानी भारत में हिंदुओं की आधी आबादी को कुंभ स्नान करवा चुके एक महीने में..कुंभ ख़त्म होने तक सरकारी दावों के मुताबिक 80 करोड़ हिंदू कुंभ स्नान कर लेंगे..सरकारी अव्यवस्थाएं यथावत जारी रहेंगी..लोग मरते रहेंगे..
एक RSS पदाधिकारी ने टिप्पणी की थी कि जो कुंभ में मरे, उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ (बाबा बागेश्वर ने भी ऐसा कहा था, हालांकि शर्म के मारे तब से चुप हैं)..इस पर मैने उन स्वयंसेवक से ये कहा था कि काश कुंभ में इसी तरह का मोक्ष आपको भी प्राप्त हो..अगर भगदड़ में नहीं मरते तो दोबारा कुंभ जाकर चुल्लू भर पानी में डूबकर मर जाइए..शायद आपको भी मोक्ष मिल जाए..थोड़ी देर बाद सरकारी गिद्ध निकल आएंगे, जो नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ के लिए भीड़ को दोषी ठहरा देंगे…याद रखिए..कितने भी हिंदू मर जाएं बदइंतजामी से..हिंदू हृदय सम्राटों की सरकार की कोई गलती नहीं होती..गलती मरने वालों की होती है…और सच कहूं तो गलती उनकी है भी..सरकारी दावों पर भरोसा करने की गलती उन्होंने की..अब भुगतो..

PS : इतिहास बहुत निर्मम होता है..आज सरकार विज्ञापनों के दम पर खबरों को मैनेज कर लेगी लेकिन यकीन मानिए महाकुंभ 2025 का जब भी मूल्यांकन होगा, सरकारी बदइंतजामी, भगदड़ से हुई मौतों और हताहतों की संख्या छिपाने की सरकारी बेशर्मी का जिक्र भी होगा..सबसे बड़ी बात..कुंभ गए 80% लोग खुद गवाह हैं अव्यवस्थाओं और उससे हुई परेशानी के..सार्वजनिक पटल पर भले ही इसे स्वीकार नहीं करेंगे..अपनी आत्मा से झूठ कैसे बोलेंगे?