राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सरायकेला-खरसांवा उपायुक्त को आठ हफ्ते के भीतर स्वर्णरेखा परियोजना के विस्थापितों की समस्या पर एक्शन लेने को कहा है.
राष्ट्रीय मानावाधिकार आयोग ने सरायकेला-खरसांवा के उपायुक्त को पत्र लिखकर निर्देशित किया है कि स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना के विस्थापितों की समस्या पर जल्द से जल्द संज्ञान, कार्रवाई और मदद की जाए । आयोग ने आवेदनकर्ता को बताने का भी निर्देश दिया है कि आखिर उन्होंने इस बाबत क्या किया । राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के विधि विभाग ने झारखण्ड मनावधिकार संघ के अध्यक्ष दिनेश कुमार किनू के आवेदन पर संज्ञान लिया , जिसकी केस संख्या 1733/34/16/2022 है. जिसमे झारखंड सरकार के द्वारा विस्थापितों को मुआवजा, पुनर्वास और नौकरी की पहल नहीं की गई, इसके साथ-साथ, जो परियोजना के नाम पर राशि खर्च किया गया, इसकी सीबीआई जांच की मांग की गई है ।
चांडिल डेम,स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना की शुरुआत अविभाजित बिहार राज्य में जल संसाधन विभाग, बिहार सरकार द्वारा सिचाई परियोजना 1978-79 में स्वर्ण रेखा डैम पर शुरु की गई थी । इसे लेकर 9 फरवरी 1978 को एक समिति का भी गठन किया गया था , जिसमे लाखों विस्थापितों की स्थलीय जांच रिपोर्ट देनी थी।
14 फरवरी 1989 को समिति की पहली बैठक भी हुई , सिचाई विभाग से इससे प्रभावित होने वाले गांव और लोगों के पूर्ण नियोजन के लिए विवरण भी मांगी गई थी । चांडिल डैम परियोजना से पूर्ण रूप से 32और आंशिक तौर 58 गांव प्रभावित थे. जो बाद में 116 से अधिक हो गई थी। इससे 17 हजार हैक्टेयर जमीन प्रभावित हुई थी। समिति ने विस्थापितों को जमीन के बदले मुआवजा देने की बात कही। 17 फरवरी 1978 को जो स्थलीय जांच किया गया था, उसमे विस्थापितों की अधिग्रहित भूमि पर मुआवजा, मकान और नौकरी की अनुशंसा की गई थी। 10 और 11 जुलाई को समिति ने फिर जांच कर विस्थापितों को मुआवजा, नौकरी, मकान और अन्य सुविधाएं देने की अनुशंसा की ।
तात्कालीन बिहार सरकार ने जांच को मानते हुए विभाग को निर्देश दिया कि विस्थापितों को सारी सुविधाएं मुहैया कराई जाए । जो भी सिफारिश की गई थी, उसमे लगभग सभी मांगों को मान लिया गया था ।
इस परियोजना का तात्कालीक सरकार के द्वारा 983.20 करोड़ की लागत से बननी थी। लेकिन, आज 36 हाजार करोड़ खर्च होने के बाद भी न परियोजना का काम पूरा हुआ और न ही विस्थापितों के वादे जमीन पर उतरे और न उनका वाजिब हक मिला। जो पैसे खर्च किए गये,इसकी सीबाआई जांच होनी चाहिए, ताकि दोषी अफसरों पर कानूनी कार्रवाई हो ।
11 अक्टूबर 2022 को झारखण्ड मानवाधिकार संघ के अध्यक्ष दिनेश कुमार किनू की अगुवाई में नरेश साहू, लालमोहन गोप,संजय कुमार महतो और भुवन लोहार ने दिल्ली जाकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को इस बारे में आवेदन दिया था.
