सरसों में ही भूत है…सिलिंडर ही कमल है…अजब प्रेम की गजब कहानी.

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सरसों में ही भूत है…
सिलिंडर ही कमल है…
अजब प्रेम की गजब कहानी..

2019 के विधानसभा चुनाव के पहले तक झारखंड बीजेपी में लगभग सब कुछ ठीक चल रहा था। झारखंड गठन के बाद जितने भी मुख्यमंत्री हुए उनमें रघुवर दास ही थे जिन्होंने अपना 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा किया।
उनकी सरकार में सरयू राय जमशेदपुर पश्चिम का प्रतिनिधित्व करते हुए मंत्री बने।
परंतु 2019 के विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे के समय सरयू राय का टिकट भाजपा आलाकमान के द्वारा काट दिया गया और लगभग आखिरी वक्त पर देवेंद्र सिंह को जमशेदपुर पश्चिम से भाजपा का प्रत्याशी घोषित कर दिया गया। इस एक निर्णय ने भाजपा संगठन की चुलें हिला दी।
सरयू राय का टिकट काटा गया तो उन्होंने इसका जिम्मेदार रघुवर दास को बताया और प्रतिशोध स्वरूप भाजपा से बगावत कर जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय लड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को पराजित भी किया।
2019 से 2024 के बीच जमशेदपुर पूर्वी पर वर्चस्व को लेकर रघुवर दास गुट और सरयू राय गुट के बीच जोरदार रस्साकशी हुई । सरयू राय को भाजपा से निष्कासित कर दिया गया ।
2024 के विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने से कुछ दिनों पहले सरयू राय पटना जाकर जदयू में शामिल हो गए। दरअसल सरयू राय अच्छे से जानते थे 2019 को 2024 में दोहराना संभव नहीं है। तो उन्हें जमशेदपुर पश्चिम में अपने लिए सबसे सुरक्षित मौका नजर आया ।
केंद्र में राजग की सरकार बैशाखी पर है और नीतीश कुमार की जदयू के समर्थन से मोदी सरकार तीसरे कार्यकाल के पथ पर अग्रसर है। भाजपा के लिए राज्य से बढ़कर केंद्र है और इसी का फायदा उठाकर सरयू राय जदयू में शामिल होकर जमशेदपुर पश्चिम से अपने लिए जदयू कोटे के तहत अपना टिकट रिजर्व करवाने में सफल हो गए।
सबसे बड़ी बात यह है की सरयू राय भाजपा से निष्कासित हैं परंतु गठबंधन के तहत भाजपा कार्यकर्ता ही उनका चुनाव प्रचार कर रहे हैं, क्योंकि जमशेदपुर पश्चिम में जदयू का कोई जनाधार है ही नहीं। जमशेदपुर पूर्वी में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीतने के बाद सरयू राय ने भजमो का गठन किया और एक नई पार्टी बनाने के तौर तरीकों के साथ संगठन का विस्तार कार्यकर्ताओं का एक ग्रुप तैयार किया।
2019 से 2024 तक सरयू राय उनके साथ ही व्यस्त रहे परंतु चंचल स्वभाव के सरयू राय का मन कभी एक जगह स्थिर नहीं रहा। जमशेदपुर पूर्वी से विधायक रहते 2024 के लोकसभा चुनाव में धनबाद संसदीय सीट से लड़ने के लिए एडी चोटी का जोर लगा दिया और भाजपा के घोषित प्रत्याशी ढुल्लू महतो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
जब वहां सरयू राय की दाल नहीं गली तो अपनी पुरानी सीट जमशेदपुर पश्चिम की तरफ रुख किया।
सरयू राय यह बात अच्छे से जानते थे कि जमशेदपुर पूर्वी से 2024 में जीत पाना लगभग असंभव है और वह किसी भी तरह जमशेदपुर पूर्वी से बाहर निकलना चाहते थे। सबसे हास्य की बात यह है कि जमशेदपुर पूर्व के कार्यकर्ता अनाथ हो गए और उनके प्रिय में से एक अमित शर्मा को निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जमशेदपुर पूर्वी से नामांकन करना पड़ा।
और उनके ज्यादातर समर्थक जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय लड़ रहे भाजपा के बागी उम्मीदवार शिव शंकर सिंह से जाकर मिल गए और जमशेदपुर पूर्वी की भाजपा प्रत्याशी पूर्णिमा दास साहू के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं।
परंतु जमशेदपुर पश्चिम में सरयू राय पूरी तरह से भाजपा कार्यकर्ताओं के भरोसे चुनाव मैदान में हैं। बिहार की राजनीति के चाणक्य नीतीश कुमार दो बार पहले भी भाजपा से नाता तोड़कर लालू प्रसाद की राष्ट्रीय जनता दल के साथ सरकार बन चुके हैं और इसकी क्या गारंटी है कि नीतीश कुमार तीसरी बार ऐसा नहीं करेंगे? अगर ऐसा होता है तो फिर सरयू राय क्या करेंगे? आज उनके लिए भारतीय जनता पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी है परंतु भविष्य में कभी सरयू राय को नीतीश कुमार के पीछे राष्ट्रीय जनता दल प्लस कांग्रेस गठबंधन में जाना पड़ा तो आज सरयू राय का समर्थन कर रहे सनातन हिंदुओं और कर्मठ भाजपा कार्यकर्ताओं का क्या होगा? साफ तौर पर अपना राजनीतिक वजूद बचाने के लिए सरयू राय निष्ठावान भाजपा कार्यकर्ताओं की भावनाओं से खेल रहे हैं।

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