झारखंड में टूरिज्म की अपार संभावनाएं हैं। पर्यटन विकसित होने से रोज़गार के हजारों अवसर मिलेंगे। लेकिन टूरिज्म को लेकर 20 राज्यों की सूची में हम अंतिम पायदान पर हैं।
गलती किसकी?
देवघर के बाद सबसे ज़्यादा बाहरी टूरिस्ट पारसनाथ (मधुवन) आते हैं। इस वर्ष पारसनाथ को लेकर कैसी राजनीति हुई, वो हम सबने देखी।
देवघर में रोपवे हादसा हुआ, लेकिन उसके बाद स्थानीय सांसद और उपायुक्त के बीच जो हुआ, वो हम सबने देखा।
बोधगया, मलूटी, पारसनाथ टूरिज्म कॉरिडोर बन सकता है, इटखोरी महोत्सव को हम भव्य बना सकते हैं।
महाकाल कॉरिडोर और वाराणसी कॉरिडोर की तरह देवघर मनोकामना लिंग कॉरिडोर विकसित किया जा सकता है।
लेकिन ये सब फालतू सोचने के लिए वक्त है किसके पास। हम तो आपस में ही लड़- झगड़ कर खुश हैं। कभी 1932 के नाम पर, कभी कुड़मी आंदोलन के नाम पर तो कभी 60_40 के नाम पर, कभी बाहरी -भीतरी, आदिवासी – गैर आदिवासी के नाम पर।
अपने हाथों से अपने घर को बर्बाद करने वाले हम सब हैं।
