विगत चार दिनों से अस्पताल में सड़ रही नवजात प्रसुता मनिका देवी की देह (रुह)ने आज सिस्टम के हाथों हार मान ली और उसके परिजनों ने हताश होकर उसके पार्थिव शरीर को इस नश्वर संसार से विदा देने का फैसला किया|
विगत दिनों इसी तरह इस सिस्टम का शिकार हुई मृतका के परिजनों ने विरोध जताते हुए जिस डाक्टर ने इलाज किया था उसके साथ मारपीट किया और इस मारपीट की घटना सीसीटीवी कैमरे में रिकॉर्ड होने के बाद फ्लैश हो गया| इसके विरोध में डाक्टरों ने हडताल कर दिया जिसे आईएमए जमशेदपुर ने भी अपना समर्थन दिया| आरोपीयों की गिरफ्तारी के बाद हडताल खत्म हुआ| सवाल यह है कि जो सवाल और न्याय की मांग को लेकर मृतका के परिजनों ने इतना विरोध किया वह सवाल ही अनुत्तरित रह गया| ऐसे मौतों पर सरकार के तरफ से किसी भी तरह के मुआवजे का भी प्रावधान नहीं है और ऊपर से विरोध करने का अधिकार भी डाक्टरों के हडताल के खौफ तले दब गया तो फिर आम और गरीब आदमी के पास बचता क्या है? परिजनों को भी खोना, फिर विरोध करने पर जेल भी जाना, कई सवाल खड़े करता है| परिजनों द्वारा डाक्टरों के साथ मारपीट की घटना पूरी तरह गलत और घटिया सोच है परंंतु हास्पीटल कैम्पस के अंदर ही कोई शिकायत पेटी या शिकायत कोषांंग भी होना चाहिए जहाँ परिजन अपनी शिकायत दर्ज करवा सकें|
