टाटा स्टील की बिजली की चोरी का अवैध कारोबार ..
कौन है जिम्मेदार….?
टाटा स्टील पूरे जमशेदपुर शहर के रखरखाव का जिम्मा उठाती है। चाहे वह पानी हो ,बिजली हो ,सफाई हो, स्वास्थ्य हो या अन्य मूलभूत नागरिक सुविधाएं हों।
वर्तमान में साकची में जहां अभी बिरसा पार्क है, वहाँ सालों पहले पुरानी किताबों का व्यवसाय करने कुछ दुकानदार फुटपाथ में बैठकर अपना व्यापार कर चलते थे। उस जगह से विस्थापित होने के बाद उन लोगों ने अपना डेरा जमाया पुराने कोर्ट परिसर के ठीक सामने स्थित खाली पड़े भूखंड पर।
वर्तमान में वहां करीब 40 की संख्या में पुरानी किताबों की दुकानें हैं। यह सभी दुकान अर्ध गोलाकार आकार में व्यवस्थित हैं। इन दुकानों को विद्युत आपूर्ति करने हेतु टाटा स्टील इलेक्ट्रिकल विभाग ने इन दुकानों के बीचो-बीच स्थित खाली जगह पर एक ट्रांसफार्मर लगाया। इसके बाद टाटा स्टील इलेक्ट्रिकल विभाग के 𝘿𝙂𝙈 स्तर के अधिकारी की मिली भगत से दलालों की एक टोली सक्रिय हुई।
सबसे पहले जहां ट्रांसफार्मर स्थित है, वहां के खाली पड़े जगह पर अपराधियों की टोली का एकत्रीकरण शुरू हुआ। उसके बाद शराब के पीने और पिलाने का काम शुरू हुआ। और साथ ही साथ शहर के एसपी कार्यालय से मात्र 50 मीटर की दूरी पर स्थित इस जगह पर अपराध की योजना पर अमल करने का काम भी जोर पकड़ने लगा।
इन अपराधियों के मिली भगत ने एक नया तरीका खोज निकाला और उस ट्रांसफार्मर से अवैध बिजली के तारों को खींच कर होंडा शोरूम होते हुए नागरमल होते हुए दयाल इंटरनेशनल होटल के सामने स्थित पेड़ों की आड़ लेकर पार करते हुए जुबली पार्क जाने वाले रास्ते के दोनों तरफ स्थित सैकड़ो फुटपाथ की दुकानदारों तक तारों को पहुंचाया गया। और उन तारों से उन सभी फुटपाथ दुकानदारों को बिजली का अवैध कनेक्शन दिया गया। जिसके एवज में प्रत्येक दुकानदारों से पैसे वसुलने का काम शुरू हुआ ।
वर्तमान में इन दुकानदारों से प्रतिदिन की वसूली लगभग ₹15000 के करीब है और यह रकम साल के लगभग 50 लख रुपए के आसपास होता है।
इस पूरे खेल को टाटा स्टील के इलेक्ट्रिकल विभाग के 𝘿𝙂𝙈 स्तर के अधिकारी की देखरेख में शुरू किया गया था।
वर्तमान में वह अधिकारी 𝙋𝙧𝙤𝙘𝙪𝙧𝙚𝙢𝙚𝙣𝙩 विभाग में कार्यरत है। इस वसूली की जिम्मेदारी राजेश निगम नाम के व्यक्ति के साथ एक पूरी टीम करती है ।
अपना हिस्सा रखने के बाद की आमदनी का एक बड़ा हिस्सा टाटा स्टील के प्रोक्योरमेंट विभाग में पद स्थापित उस अधिकारी तक भी जाता है। साथ ही साथ इसका एक हिस्सा कुछ चुनिंदा पत्रकारों को भी दिया जाता है।टाटा स्टील और स्थानीय जिला प्रशासन को अविलंब इस मामले में हस्तक्षेप कर इसे बंद करना चाहिए, नहीं तो चोरी का यह अवैध कारोबार यूं ही चलता रहेगा और टाटा स्टील की प्रतिष्ठा अपने ऐसे कर्मचारियों की वजह से धूमिल होती रहेगी ।
साथ ही जिला उपायुक्त कार्यालय और वरीय आरक्षी अधीक्षक कार्यालय से मात्र 50 मीटर की दूरी पर अपराधियों का जमावड़ा जिला प्रशासन की सक्रियता और कार्यशैली पर सवाल खड़े करता रहेगा।


