कथित रूप से चोटिल दो भाजपा सांसदों से अस्पताल में मिलने वाले भाजपा के स्थापित और विस्थापित नेताओं का लगा है तांता, परंतु बीमार लालकृष्ण आडवाणी की चौखट सुनी…..

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वाकई राजनीति बहुत ढीठ और हरजाई होती है!भाजपा के वास्तविक उद्धारक और उसे सत्ता का स्वाद चखाने में अहम भूमिका निभाने वाले #लालकृष्ण_आडवाणी पिछले एक हफ्ते से ज्यादा समय से अपोलो अस्पताल के आईसीयू में दाखिल हैं. इस दौरान भाजपा का कोई नेता उन्हें देखने गया हो, ऐसी कोई खबर नहीं है. लेकिन कथित रूप से चोटिल दो भाजपा सांसदों से अस्पताल में मिलने वाले भाजपा के स्थापित और विस्थापित नेताओं का तांता लगा हुआ है.

ऐसे नेताओं में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और फिर से मंत्री बनने की आस लगाए बैठे रविशंकर प्रसाद के अलावा और भी कई नेता हैं जिन्हें आडवाणी ने अपने सक्रियता के दौर में खूब आगे बढ़ाया, फर्श से अर्श तक पहुंचाया.

शिवराज सिंह को तो उन्होंने मुख्यमंत्री ही नहीं बनाया था बल्कि प्रधानमंत्री पद के लिए भी उनका नाम आगे किया था. लेकिन पिछले 10 साल के दौरान वे आडवाणी जी से सिर्फ एक बार मिलने गए, जब उन्हें मुख्यमंत्री पद बेदखल कर दिल्ली बुला लिया गया. मुख्यमंत्री रहते हुए भी शिवराज सिंह महीने में दो बार दिल्ली आते थे लेकिन वे आडवाणी से मिलना तो दूर, उस #पृथ्वीराज_रोड से भी नहीं गुजरते थे, जहां आडवाणी सरकारी कोठी में रहते हैं.

वक्त-वक्त की बात है! कभी दिल्ली के पृथ्वीराज रोड स्थित आवास पर सुबह से देर रात तक कारों की लंबी कतार लगी रहती थी लेकिन अब यहां हर समय सन्नाटा पसरा रहता है। कभी-कभार कोई भूले-भटके यहां आता भी है तो दो-चार मिनट में ही उलटे पांव लौट जाता है, क्योंकि आडवाणी जी न तो किसी से कोई बात करते हैं और न ही मिलते हैं.

उनके जन्मदिन पर भी सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी ही उन्हें रस्मी बधाई देने पहुंचते हैं. बाकी कुछ लोग ट्विटर पर ही जन्मदिन की दिखावटी मुबारकबाद दे देते हैं। कुछ तो ऐसा करने में भी डरते हैं। माइक और कैमरावाले मीडिया को भी शायद यहां आने की कहीं से सख्त मनाही है।

कुल मिला कर यही है आडवाणी के लंबे और घटनाप्रधान सियासी सफर के बाद की मौजूदा थकी हुई हकीकत।

अंदाजा ही लगाया जा सकता है कि अपने अकेलेपन में आडवाणी जी शून्य में ताकते हुए क्या सोचते होंगे! वे जो भी सोचते हों, लेकिन अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी दो गलतियों पर तो निश्चित ही पछताते होंगे!

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