24 साल हो गए झारखंड राज्य का गठन हुए, कई सरकारें आई और गईं। वहीं कितने मुख्यमंत्री आए और गए। इन 24 वर्षों में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री की पूरी फौज मौजूद है । बाबूलाल मरांडी ,अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा, शिबू सोरेन ,हेमंत सोरेन सहित झारखंड में राष्ट्रपति शासन भी रहा है।
किसी भी राज्य के विकास का आईना वहां के सडकें और यातायात व्यवस्थाएं होती हैं। देश के लगभग हर राज्य का अपना परिवहन सिस्टम है और सभी सफलतापूर्वक संचालित हो रही है ।
बिहार से जब झारखंड अलग होकर झारखंड राज्य के रूप में अस्तित्व में आया ठीक उसी समय और दो राज्यों ने भी प्रसव पीड़ा के बाद राज्य के रूप में जन्म लिया जो उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ कहलाये। इन राज्यों में झारखंड कहीं पीछे रह गया और कई मायनों में छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड विकास की रफ्तार में आगे निकल गए। झारखंड गठन के 24 वर्षों के बीत जाने के बावजूद आज भी झारखंड राज्य की परिवहन सेवा चालू नहीं हो पाई संयुक्त बिहार के समय बिहार राज्य सड़क परिवहन निगम के अंतर्गत बसें चलती थी। परंतु इन सातों मुख्यमंत्री के शासनकाल में किसी ने भी झारखंड राज्य सड़क परिवहन निगम बनाने की पहले नहीं की।
जबकि उत्तराखंड में यूटीसी और छत्तीसगढ़ में उसकी अपनी परिवहन सेवा मौजूद है ।इसके साथ ही लगभग हर राज्य की अपनी परिवहन सेवा मौजूद है परंतु इस मामले में झारखंड राज्य दुर्भाग्यशाली रहा है। पहले की बात छोड़ दीजिए तो साढे चार सालों से ज्यादा समय तक परिवहन मंत्री रहे, और पांच महीना से ज्यादा झारखंड राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे, परंतु झारखंड में परिवहन सेवा चालू करवाने की कोई भी सार्थक नीति लागू करवाने में असफल रहे। अगर चंपई सोरेन में दृढ़ इच्छा शक्ति रही होती तो आज झारखंड के सड़कों पर भी झारखंड राज्य सड़क परिवहन निगम की बसें दौड़ रही होती। और झारखंड राज्य की परिवहन व्यवस्था तीन पहिया ऑटो चालकों के भरोसे नहीं होती । साढे चार सालों से ज्यादा परिवहन मंत्रालय अपने पास रहने के बाद भी और मुख्यमंत्री बनने के बाद भी चंपई सोरेन अपना नाम इतिहास के पन्नों में लिखवाने से चूक गए।
इस बीच बदले राजनीतिक घटनाक्रम में चंपई सोरेन झामुमो को छोड़कर भाजपा में शामिल हो शामिल हो चुके हैं और उनके कार्यकाल की उपलब्धि शुन्य नजर आती है। जनता के बीच जब यह दोबारा जाएंगे तो जरूर उनके कार्यकाल का मूल्यांकन होगा और वहां चंपई सोरेन खाली हाथ नजर आते हैं।
