सांसद-विधायक प्रतिनिधि नियुक्ति का नहीं है कोई नियम.. सभी नियुक्तियां अवैध और असंवैधानिक…..
कहने सुनने में अजीब लगता है। जो खुद किसी का प्रतिनिधि है वह अपने जिम्मे सौंपे गए कार्यों के निष्पादन के लिए एक और प्रतिनिधि नियुक्त कर देता है। यही नहीं शासन और प्रशासन भी इन्हें मान्यता देता है और यह हर स्तर पर हस्तक्षेप करते मिलते हैं।
दरअसल यह संपूर्ण व्यवहार कानूनी दृष्टि से जहां अवैध है वही नैतिक दृष्टिकोण से भी उचित नहीं कहा जा सकता।
इन नकली जनप्रतिनिधियों का सब तरफ दबदबा नजर आता है। ये अनेक प्रशासनिक बैठक में बाकायदा हिस्सा लेते हैं और शासकीय कार्यों में हस्तक्षेप भी करते हैं।
जबकि सच्चाई यह है कि कोई भी जनप्रतिनिधि चाहे वह विधायक हो या सांसद अपनी जगह किसी अन्य को प्रतिनिधि नियुक्ति का कोई अधिकार नहीं रखता है।
दरअसल यह नियुक्तियां अवैध और असंवैधानिक हैं। इसे इस तरह से समझें कि एक किसान अपने कार्यों के निष्पादन के लिए मजदूर नियुक्त करता है फिर वह मजदूर अपनी जगह किसी अन्य को मजदूर नियुक्त कर उसे कार्य पर लगा देता है।
अगर सांसद या विधायक प्रतिनिधि नियुक्त करना संवैधानिक होता तो इन महाशयों की जगह सांसद और विधानसभा में उनके प्रतिनिधि बैठते और सदन की चुनावी प्रक्रिया में वोट भी देते।
कोई भी सांसद विधायक चाह कर भी सदन में अपना प्रतिनिधि नहीं भेज सकता।
प्रतिनिधियों के साथ क्या है दिक्कतें…..
कोई सांसद या विधायक प्रतिनिधि किसी अधिकारी से मिलने गया है तो प्रशासनिक प्रोटोकॉल के तहत क्या ऐसे प्रतिनिधि को कुर्सी ऑफर की जाएगी? क्योंकि प्रतिनिधि ने ना तो चुनाव लड़ा और ना चुनाव जीता।
जनता ने अपना जनादेश सांसद-विधायक को दिया है, ना कि उनके प्रतिनिधियों को– जनप्रतिनिधियों का प्रतिनिधि बताकर और बनाकर लोकतंत्र का मजाक उड़ाना ही तो है।
